भारत में बेरोजगारी कोई नई समस्या नहीं है पर इससे लड़ने का रास्ता शिक्षा को पाकर ही मिल सकता है.
ये किसी नेता के विचार नहीं हैं और ना ही किसी
सरकारी भाषण का हिस्सा. ये एक ऐसे आम आदमी की आवाज़ है जिसने अपनी मेहनत से
अपना रास्ता बनाया.
डॉक्टर रमेश थापा उत्तर प्रदेश के जौनपुर ज़िले के एक होटल में वेटर हैं पर उनके पास पीएचडी डिग्री है.
दिन में वह जौनपुर के एक महाविद्यालय में अंश कालिक प्रवक्ता के रूप में काम करते हैं और शाम को फिर वेटर बन जाते हैं.
पढ़ने का जज्बा
पाँच भाई और एक बहन के भरे-पूरे परिवार में रमेश का जन्म नेपाल के जनकपुर ज़ोन के सिन्दुली ज़िले में हुआ.
पिता भक्त बहादुर निरक्षर किसान थे लेकिन अपने बेटे को हमेशा पढ़ने के लिए प्रेरित करते थे.
गरीबी पढाई में बाधा तो बनी पर रमेश के जज़्बे के आगे कोई मुश्किल टिक नहीं पाई.
पढाई में तेज़ होने के कारण उन्हें बचपन से ही तत्कालीन नेपाल सरकार की रत्न बाल कोष छात्रवृति मिलने लगी जिससे पढाई जारी रही.
इसी बीच एक लंबी बीमारी के बाद रमेश के पिता का
निधन हो गया और नेपाल की राजनीतिक परिस्थितयाँ भी बिगड़ने लगीं और नेपाल
सरकार से मिलनेवाली छात्रवृत्ति बंद हो गई.
रमेश अपनी पढाई जारी रखना चाहते थे पर आर्थिक परिस्थितियों से विवश होकर उन्होंने नौकरी करने का फ़ैसला किया.
नेपाल में कोई ठीक रोज़गार नहीं मिल पाया तो रोज़गार की तलाश में वो वाराणसी आ गए .
संघर्ष
रमेश जब भारत आए तो वह सिर्फ़ दसवीं पास थे. अपने बड़े भाई राजू की मदद से वे जौनपुर के एक होटल में वेटर हो गए.
फिर शुरू हुआ संघर्ष. एक नए दौर में, नए परिवेश
में, घर- परिवार से दूर और अपनी बचत घर भेजने की मजबूरी के बीच रमेश ने
सबके बीच सामंजस्य बिठाया.
वो जब भी अकेला होता तो उसे अपने पिता की बहुत याद आती जो उसे हमेशा पढ़ने के लिए प्रेरित किया करते थे.
वो याद करते हुए बताता है कि ये शायद उनका ही आशीर्वाद था जो वो इतनी विपरीत परिस्तिथियों के बावजूद यहाँ तक पहुँच गया.
जौनपुर में काम करने के साथ उसने व्यक्तिगत परीक्षार्थी के रूप में बारहवीं की परीक्षा पास की.
फिर तो उसके हौसलों को पंख लग गए. दिन में जब काम
का दबाव कम होता तो वो पढता और शाम को पेट की आग बुझाने के लिए वेटर की
वर्दी पहन लेता.
उसकी लगन को देख कर होटल के मैनेजर जितेंद्र यादव ने भी उसका हौसला बढ़ाया.
बीए और एमए करने के बाद उसने शोध छात्र के रूप में
जौनपुर के ही वीर बहादुर सिंह पूर्वांचल विश्वविद्यालय के टी डी
महाविद्यालय में ग्राम्य सामाजिक विकास में उद्योगों की भूमिका विषय पर शोध
छात्र के रूप में दाखिला ले लिया.
सपना
वेटर और शिक्षक के रूप मे दोहरे दायित्वों को निभाने के बारे में रमेश का नजरिया एकदम स्पष्ट है.
रमेश पिछले दो साल से अंश कालिक प्रवक्ता के रूप में काम कर रहें हैं जहाँ उन्हें तीन हज़ार रुपए मिलते हैं.
पर जब कोई छात्र होटल में खाना खाने आता है तो वह उसका सम्मान एक ग्राहक की तरह से ही करते हैं.
हाँ यह बात अलग है कि उनके छात्र होटल में भी उन्हें सम्मान देते हैं.
भविष्य की योजनाओं के बारे में रमेश बताते हैं वे
जल्दी ही माँ का आशीर्वाद लेने नेपाल चले जायेंगे और फिर शिक्षण में अपना
भविष्य तलाशेंगे.
रमेश के शोध निर्देशक डॉ आर एन त्रिपाठी बताते हैं
कि रमेश को अपने निर्देशन में शोध कराने का एक मात्र कारण उनका पढाई के
प्रति लगाव और शिक्षक बनने की चाह थी.